कोई भगवान कहता है
कोई भगवान कहता है
कोई भगवान कहता है
किसी ने अल्लाह लिखा
कोई भगवान कहता है
कोई भगवान कहता है
किसी ने अल्लाह लिखा
कोई भगवान कहता है
किसी ने अल्लाह लिखा
मेरे लिए खुदा से भी ऊपर है वो
मैंने बिस्मिल्लाह भी मां लिखा।
चार लाइनें पेश करता हूँ
यह उनके लिए है
जो घर से बहुत दूर रहते हैं
किसी भी वजह से
तो... गौर फरमाइएगा कि
मैं हर रोज
मैं हर रोज दरवाजे पे तेरा इंतजार रखके जाता हूँ
मैं हर रोज दरवाजे पे तेरा इंतजार रखके जाता हूँ
तू आज आइ होगी लौट कर मां
इस उम्मीद मे मैं जल्दी घर आता हूँ
तू आज आइ होगी लौट कर मां
इस उम्मीद मे मैं जल्दी घर आता हूँ
तूझे ना पाकर मैं नहीं टूटता
मेरी उम्मीद टूट जाती है
तूझे ना पाकर मैं नहीं टूटता
मेरी उम्मीद टूट जाती है
मेरा हौंसला देख
फिर उसी इंतजार को मैं अपने सिराहने सुलाता हूँ
फिर उसी इंतजार को मैं अपने सिराहने सुलाता हूँ
और कोई खास लगाव नहीं है
मुझे अपने इन किराए की दीवारों से
कोई खास लगाव नहीं है
मुझे अपने इन किराए की दीवारों से
जहाँ मैंने मां की तस्वीर लगाइ है
उसी कमरे को घर बुलाता हूँ
जहाँ मैंने मां की तस्वीर लगाइ है
उसी कमरे को घर बुलाता हूँ
और कोई लड़ता हुआ ना देख ले
मुझे अपने आप से ही कभी
कोई लड़ता हुआ ना देख ले
मुझे अपने आप से ही कभी
इसलिए कभी खुद छुप जाता हूँ
तो कभी घर का आइना छुपाता हूँ
हर रोज मैं दरवाजे पे तेरा इंतजार रख के जाता हूँ
तू आज आइ होगी मां
इस उम्मीद मे मैं जल्दी घर आता हूँ
ये चार लाइनें हैं
मैं उन लोगों को डेडिकेटेड करना चाहूंगा
जिनके लिए त्योहार का मतलब
दफ्तर की छुट्टी होती है और
इससे ज्यादा और कुछ नहीं होता है
हर दिन नोर्मल होता है
बस एक दिन की छुट्टी बढ जाती है
तो सुनना कि
अब कोई त्यौहार मुझसे मिलने नहीं आता है
मेरे किराए के घर में
अब कोई त्यौहार मुझसे मिलने नहीं आता है
मेरे किराए के घर में
मेरी मां दिये सजाकर गांव में मेरा इंतज़ार करती है
मेरी मां दिये सजाकर गांव में मेरा इंतज़ार करती है
और तरक्की मिल जाती है इस शहर में मुझे हर रोज़
खुशी नहीं मिलती
तरक्की मिल जाती है इस शहर में मुझे हर रोज़
खुशी नहीं मिलती
मेरी पीठ
मेरी पीठ बाप के उस शाबाशी वाले
थपकी का इंतजार करती है
अब कोई त्यौहार मुझसे मिलने नहीं आता है
मेरी मां गांव में दिये सजाकर मेरा इंतज़ार करती है
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कोई भगवान कहता है
किसी ने अल्लाह लिखा
कोई भगवान कहता है
किसी ने अल्लाह लिखा
मेरे लिए खुदा से भी ऊपर है वो
मैंने बिस्मिल्लाह भी मां लिखा।
चार लाइनें पेश करता हूँ
यह उनके लिए है
जो घर से बहुत दूर रहते हैं
किसी भी वजह से
तो... गौर फरमाइएगा कि
मैं हर रोज
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मैं हर रोज दरवाजे पे तेरा इंतजार रखके जाता हूँ
मैं हर रोज दरवाजे पे तेरा इंतजार रखके जाता हूँ
तू आज आइ होगी लौट कर मां
इस उम्मीद मे मैं जल्दी घर आता हूँ
तू आज आइ होगी लौट कर मां
इस उम्मीद मे मैं जल्दी घर आता हूँ
तूझे ना पाकर मैं नहीं टूटता
मेरी उम्मीद टूट जाती है
तूझे ना पाकर मैं नहीं टूटता
मेरी उम्मीद टूट जाती है
मेरा हौंसला देख
फिर उसी इंतजार को मैं अपने सिराहने सुलाता हूँ
फिर उसी इंतजार को मैं अपने सिराहने सुलाता हूँ
और कोई खास लगाव नहीं है
मुझे अपने इन किराए की दीवारों से
कोई खास लगाव नहीं है
मुझे अपने इन किराए की दीवारों से
जहाँ मैंने मां की तस्वीर लगाइ है
उसी कमरे को घर बुलाता हूँ
जहाँ मैंने मां की तस्वीर लगाइ है
उसी कमरे को घर बुलाता हूँ
और कोई लड़ता हुआ ना देख ले
मुझे अपने आप से ही कभी
कोई लड़ता हुआ ना देख ले
मुझे अपने आप से ही कभी
इसलिए कभी खुद छुप जाता हूँ
तो कभी घर का आइना छुपाता हूँ
हर रोज मैं दरवाजे पे तेरा इंतजार रख के जाता हूँ
तू आज आइ होगी मां
इस उम्मीद मे मैं जल्दी घर आता हूँ
ये चार लाइनें हैं
मैं उन लोगों को डेडिकेटेड करना चाहूंगा
जिनके लिए त्योहार का मतलब
दफ्तर की छुट्टी होती है और
इससे ज्यादा और कुछ नहीं होता है
हर दिन नोर्मल होता है
बस एक दिन की छुट्टी बढ जाती है
तो सुनना कि
अब कोई त्यौहार मुझसे मिलने नहीं आता है
मेरे किराए के घर में
अब कोई त्यौहार मुझसे मिलने नहीं आता है
मेरे किराए के घर में
मेरी मां दिये सजाकर गांव में मेरा इंतज़ार करती है
मेरी मां दिये सजाकर गांव में मेरा इंतज़ार करती है
और तरक्की मिल जाती है इस शहर में मुझे हर रोज़
खुशी नहीं मिलती
तरक्की मिल जाती है इस शहर में मुझे हर रोज़
खुशी नहीं मिलती
मेरी पीठ
मेरी पीठ बाप के उस शाबाशी वाले
थपकी का इंतजार करती है
अब कोई त्यौहार मुझसे मिलने नहीं आता है
मेरी मां गांव में दिये सजाकर मेरा इंतज़ार करती है
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